कॉल गर्ल का पहला कॉल- Antarvasna
Oplus_131072

कॉल गर्ल का पहला कॉल- Antarvasna

(Callgirl Ka Pahla Call) – Antarvasna (एक प्रतिष्ठित बिजनेस वुमन, जो आज 35 वर्ष की है, के मेल पर आधारित)

मैंने अभी अभी 18वें वर्ष में कदम रखा है। antarvasna इतने सालों से मैं घर में माँ को ही देखते आ रही हूँ। मेर एक छोटा भाई भी है तो अभी सिर्फ़ 10 वर्ष का ही है। मेरी माँ की उमर लगभग 40 वर्ष की है। यूँ तो दिखने में वो आकर्षक लगती हैं, पर शायद अधिक काम की वजह से वो थकी हुई रहती है। मेरे पापा का देहान्त हुए 6 साल हो चुके थे। तब से मम्मी ही घर को सम्भालती आ रही है।

मुझे पता था कि माँ एक काल गर्ल के रूप में काम करती थी। अधिकतर वो जीन्स और शर्ट में रहती थी। और अपने आप को एक कम उम्र की लड़की बताया करती थी। पर अब लोगों की नजर मुझ पर भी पड़ने लग गई थी। उभरती जवानी की खुशबू फ़ैलने लगी थी। मैं भी अपनी माँ की तरह सुन्दर थी और मेरे नाक नक्शे और कट्स भी अच्छे थे। मैं अब कॉलेज जाने लगी थी। मुझे सेक्स का ज्ञान तो पहले से ही था। अब मुझे सहेलियों के द्वारा चुदाने और गाण्ड मरवाने की कहानियाँ भी सुनने को मिल जाती थी। चुदाने के बाद लड़कियाँ आई-पिल्स को भी बहुत काम में लाती थी। मेरे दिल में भी कभी कभी सेक्स की भावना जागृत हो उठती थी। पर मुझे इससे डर भी लगता था कि लड़के ना जाने क्या करते होंगे।

एक बार माँ रात को घर नहीं आई तो मैं घबरा उठी। मैंने बहुत बार मोबाईल पर सम्पर्क करने की कोशिश की पर फोन का स्विच ऑफ़ था। माँ के कॉल गर्ल होने के कारण, मैंने डर के मारे आस पास किसी की मदद भी नहीं ली। मैं आस पास धीरे धीरे सभी से पूछती रही, पर निराशा ही हाथ लगी।

फिर एक दिन एक पुलिस वाला घर आया और मुझे थाने में एक लाश की पहचान करनी थी। होस्पिटल में शव-गृह में एक बर्फ़ में रखी लाश को मैं पहचान गई। वो मम्मी ही थी, उनकी हत्या हुई थी। मुझे ये तो पता नहीं था कि क्या करना चहिये था पर डर के मारे मैंने मना कर दिया कि इसे मैं नहीं पहचानती हूँ। पर घर आ कर मैं बहुत रोई।

दिन ऐसे ही गुजरते गये, इस घटना को एक साल बीत गया। मेरा छोटा भाई भी बीमार रहने लगा था। अब मुझे पैसों से परेशानी आने लगी थी। हमें कभी खाना नसीब होता था कभी तो भूखे ही रहना पड़ता था।
माँ के मरने का प्रमाण पत्र मेरे पास नहीं था तो उनका पैसा भी मेरे काम नहीं आ सका। गरीबी मेरे सिर पर आ चुकी थी, मैंने एक घर में बर्तन और झाड़ू पोंछा का काम शुरु कर दिया था।

इस दिनों कॉलेज में मेरी एक लड़के कुलदीप से पहचान हो गई थी। बातों बातों में मेरे मुख से निकल गया कि इस बार पढ़ाई जैसे तैसे करके परीक्षा दे दूंगी पर आगे से तो ईशवर ही मालिक है।
वो लड़का एक बिजनेस मेन का लड़का था, शायद वो मुझे चाहता था, उसने अपने पापा से कह कर मुझे अपनी फ़ैक्टरी में लगवा दिया था।

अब मेरी मुश्किलें थोड़ी कम हो गई थी। उसके पापा रमेश चंद की बुरी नजरें मुझ पर पड़ चुकी थी।

एक दिन उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर में बुला कर कहा कि यदि तुम अधिक पैसा कमाना चाहती हो तो तुम अपनी माँ का धन्धा अपना लो, मालामाल हो जाओगी। मैं घबरा उठी कि ये सब कैसे जानते हैं। पर जल्दी ही पता चल गया कि वो कॉल-गर्ल के शौकीन थे। शायद मेरी माँ उनके पास जाया करती थी। उनके पास दूसरी लड़कियाँ भी आती थी जिनके साथ वो मौज मस्ती करते थे।

एक बार उसने मुझे एक रात के लिये 1000 रु ऑफ़र किये। मैं चुप ही रही। पर पैसों की तंगी और पढ़ाई को देखते हुए एक बार मैंने यह निश्चय कर लिया कि जब मेरी माँ यह काम कर सकती थी तो मैं क्यों नहीं कर सकती हूँ। एक दिन मैंने उन्हें हिम्मत करके हाँ कर दी।

उन्होंने मुझे नई जीन्स और टॉप दिलाया। कई तरह की खुशबू और तरह तरह के कॉस्मेटिक्स दिलाये और रात को बुला लिया। यह वो घर नहीं था जहाँ वो रहते थे, इसे वो फ़ार्म हाऊस कहते थे। पूरा खाली था सिर्फ़ एक बड़ी उमर की औरत वहाँ काम करती थी। मैंने जिंदगी में पहली बार इतना मंहगा और स्वादिष्ट खाना खाया था।

बहुत देर तक तो वो मेरे से बातें करते रहे, फिर अपना फ़ार्म हाऊस घुमाया और अन्त में मुझे अपना बेड रूम दिखाया जहा मुझे उसके साथ खेल खेलना था।
खूबसूरत सा बेड रूम, नरम गद्दे, एयर कन्डीशन, कमरे में शानदार खुशबू, मन को खुश करने को काफ़ी था। उसे देख कर मैं अपने आप को बहुत छोटा समझने लगी।

उन्होंने मुझे कहा कि मैं अब आराम करूं, उन्हें कुछ काम करना है।

मैं बिस्तर पर लेटी तो जैसे स्वर्ग में आ गई। बदन को सहलाता नर्म गद्दा, और भीनी भीनी खुशबू ने मुझे कब सुला दिया मुझे पता ही नहीं चला।
पता नहीं कब, रात को मेरे बदन के अन्दर उनका हाथ रेंगने लगा। नींद में मुझे सपना जैसा लगा। मेरे बोबे में मिठास सी भरने लगी। इतना प्यारा सा अह्सास हुआ कि मैंने आंखे बन्द ही रहने दी और आनन्द लेने लगी।

मेरा टॉप ऊँचा हो गया, मेरी छातियाँ नंगी हो गई थी। मेरे निप्पल को होंठों से दबा कर चूसने लगा। मेरे मुख से हाय निकल पड़ी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली तो वो रमेश ही था। उसका नंगा बदन मेरे सामने था।
रमेश सेक्स के मामले में एक अनुभवी इन्सान था। उसने मुझे आहिस्ता से उत्तेजित किया और जब मैं वासना से भर गई तो उन्होंने मेरे कपड़े एक एक करके उतार दिये। मुझे उनका लण्ड बहुत प्यारा सा लगने लगा। मैं बार बार उसे पकड़ लेती थी और अपनी तरफ़ खींचती थी।

वो मेरे निप्पल को अपनी अंगुलियों से धीरे धीरे मसलने लगे। एक तीखा सा मजा आने लगा। मेरे उरोज को भी वो सहलाने और मसलने लगा। मेरे मुख से सिसकारियाँ निकल पड़ी, चूत गीली हो उठी, धीरे धीरे चिकना रस छोड़ने लगी।
उसका बलिष्ठ शरीर मेरे जिस्म से रगड़ खा कर गुलाबी सा मीठा सा मजा दे रहा था। मेरे अंग अंग को मसल कर वो मस्त किये दे रहा था।

मैं चुदने के लिये बिल्कुल तैयार थी। अब महसूस हो रहा था कि वो मेरी चूत में अपना लण्ड घुसा दे और बस अब चोद दे। बिना इस बात को जाने कि ये मेरी पहली चुदाई होगी और मेरी झिल्ली फ़ट जायेगी। चूत में एक अन्दर वासना युक्त मिठास भरने लगी थी। मुझे पहली बार ऐसे अनोखे आनन्द का मजा आ रहा था। सोचा कि लोग इसे बुरा क्यो कहते हैं? जिस काम से इन्सान मस्त हो जाये, असीम सुख मिले, उससे परहेज़ क्यूँ?

तभी उसने अपना लण्ड मेरे मुख के पास लाकर होंठों से सटा दिया। यह मेरा नया अनुभव था।
‘यह क्या कर रहे हो?’ एकाएक मुझे घिन सी आई।
‘इसे किस कर लो!’ रमेश ने कहा।
मैंने मजबूरी में उसे किस कर लिया।
‘ऐसे नहीं, मुँह में ले कर चूसो!’ उसने फिर से अपना मोटा सा लण्ड मेरे होंठों से छुला दिया।

‘हटो, ये नहीं करूंगी।’ मैंने घिन से अपना चेहरा घुमा दिया।
वो थोड़ा सा निराश हो गया।

मैंने ऐसा कभी नहीं किया था सो मुझे इस काम से और भी घिन आने लगी थी। मेरा सोचना था कि भला पेशाब करने की जगह को कौन मुँह में ले सकता है?

उसने कुछ नहीं कहा पर उसका चेहरा अब मेरी चूत पर झुक गया था और मेरी टांगें चौड़ी करके मेरी चूत पर अपना मुँह लगा दिया।
‘अरे ये क्या कर रहे हो,… ये तो पेशाब की जगह है छी:, हटो, जाने क्या कर रहे हो?’ मुझे उसकी ये हरकत बड़ी अजीब सी और घिनोनी लग रही थी कि ये पेशाब करने की जगह को ही क्यों मुख से लगा रहा है। बस लण्ड घुसेड़ना हो तो घुसेड़ दो, दोनों ही पेशाब करने जगह ही तो हैं…

‘अब तुम मुझे कुछ करने दोगी या नहीं…!!’ वो कुछ नाराज़ से लगे।
‘तो करो ना, चालू करो ना वो, यहाँ वहाँ गन्दी जगह मुँह मत लगाओ।’ मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा।
रमेश मुस्करा उठा, और मेरे ऊपर चढ़ गया।

‘क्या पहला मौका है?’ रमेश मेरी दोनों टांगों के बीच में बैठ गया, उसका लण्ड तन्ना रहा था.
मुझे भी चुदाई का आनन्द पहली बार मिलने वाला था। मेरी चूत की दरारों में उसने अपना लण्ड ऊपर नीचे घिसा। मेरा दाना फ़ड़क उठा, एक मीठी सी टीस उठी।
‘हाँ, यह पहला मौका है, पर जल्दी करो ना, घुसा डालो ना…!’
‘मजा आ रहा है ना?’
‘जी हाँ, बहुत मजा आ रहा है!’ मैंने हाँ में सर हिला दिया।

मुझे चुदाने के लिये उन्होंने एक हज़ार रुपये भी दिये थे, और स्वर्ग सा आनन्द भी मिल रहा था, सो मैंने अपनी टांगें ऊपर कर ली और अपनी चूत खोल दी।
‘तुम्हें डर नहीं लगता है ऐसे?’ मेरे होंठों को चूमते हुए बोले।

‘डर कैसा, आप तो मेरे दोस्त के पापा हो ना, आपके पास तो मैं बहुत सुरक्षित हूँ।’ मैंने भोलेपन से कहा।
‘तुम्हारा कुंवारापन चला जायेगा, फिर मैं जो करने वाला हूँ उससे सुरक्षित कैसे रहोगी?’
‘मैं पैसे के लिये यहाँ वहाँ भीख मांगती हूँ, मुझे कॉलेज छोड़ना पड़ेगा, अब मैं फ़ीस दे सकूंगी और परीक्षा दे सकूंगी, मेरी माँ नहीं है ना अब… घर में छोटा भाई भी है, भूख से बीमार रहता है। मुझे तो ये सब करना ही पड़ेगा ना। मेरी माँ भी यही करती थी ना।’

रमेश ने मुझे एक गहरी नजर से देखा, उनके चेहरे पर शर्मिन्दगी सी दिखी। उनका फूला हुआ लण्ड सिकुड़ता सा लगा। मैंने अपनी चूत का जोर उनके लण्ड पर लगाया, पर शायद वो मुरझा कर लटक गया था। मुझे लगा शायद ये कर नहीं पाते होंगे। पर ऐसा नहीं था।

‘तुम मेरे पास कैसे सुरक्षित हो, मुझे समझ में नहीं आया…!’ रमेश कुछ असमंजस में दिखा।
‘संदीप कहता है, आप बहुत अच्छे है, मुझे पता है आप ये सब करने के बाद मुझे पैसा देंगे।’ मैंने अपनी जरूरतें उसे बताई।
‘हाँ वो तो दूंगा ही!’ वो हैरान होता जा रहा था।

‘बस, तो मेरी कॉलेज की फ़ीस हो जायेगी, मेरे भाई को भी आगे पढ़ाऊँगी.’ मैंने सहजता से कहा।

वो बिस्तर छोड़ कर उठ खड़े हुए, कपड़े पहनते हुए बोले ‘उठो, और कपड़े पहन लो…! बस बहुत मजा कर लिया!’
मैं घबरा गई, और उनके पांव पकड़ लिये- नहीं नहीं जी, ये क्या… लाओ मैं चूस लेती हूँ, आप चाहे जो करो… पर प्लीज जाओ मत!’
‘दुनिया में यही सब कुछ नहीं है, बस अब नहीं… तुम इस काम के लिये फ़िट नहीं हो!’

मुझे अपने 1000 रुपए जाते हुए लगे। मेरी नजरों के सामने वही भूख और मजबूरियाँ नजर आने लगी। मुझे फिर वही अन्धेरे डराने लगे। मन में सोचा अरे मैंने यह क्या कर दिया… अब क्या होगा। इतना क्यूँ बोला मैंने… मैं रूआंसी हो उठी।
रमेश ने अपने पास बुलाया और मेरा टॉप मुझे पहना दिया, मेरी जीन्स उठा कर कहा- चलो पहनो इसे!

चेहरा उदास हो गया, जैसे मेरी जान निकल गई हो, मैंने जीन्स पहन ली और फ़फ़क के रो पड़ी ‘अब मैं परीक्षा नहीं दे पाऊँगी…’ रोते हुये हिचकी बंध गई।

रमेश ने मुझे गले से लगा लिया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। शायद वो खुद पर शर्मिन्दा हो रहे थे।
‘मुझे माफ़ कर दो… इस उमर में भी मैं जाने क्या करता रहा हूँ, तुमने तो मेरी आंखें खोल दी… क्या मैं तुम्हें कॉल गर्ल बनाने जा रहा था।’ रमेश के चेहरे पर से वासना गायब हो चुकी थी। हाँ, मुख पर एक उजाला सा जरूर नजर आ रहा था। मैं उन्हें देखती रह गई।

उनकी छाती पर सर रखे मैंने विनती की- मुझे आप फ़ीस जमा कराने लायक पैसे दे दें तो मेरी तन्ख्वाह में से काट लेना, प्लीज… नहीं तो हमें परीक्षा में नहीं बैठने दिया जायेगा।

‘मुझे माफ़ कर दो, अपने सीने में ये राज दबा लो कि मैंने तुम्हारे साथ ऐसा कुछ किया था, और मुझे नहीं पता कि मेरा तुम से क्या रिश्ता रहेगा, पर तुम मेरी दोस्त बन कर रहो, चाहे बेटी बन कर, चाहे जो रिश्ता बना लो, पर अब से तुम मेरे साथ ही रहोगी, मेरी फ़ैक्टरी में ऑफ़िस का सारा काम तुम ही सम्हालना… फिर से ध्यान रखना ये बात अपने दिल में ही रखना!’

‘जी… पर आप तो… आप अब मेरे साथ कुछ भी नहीं करेंगे… पर मुझे तो कुछ करने की लग रही है!’

‘अब चुप भी हो जाओ, ये उमर ही ऐसी होती है, शादी के बाद तो रोज ही करना… मुझे अब ये नहीं करना है बस!’
‘अंकल जी… मुझे नहीं पता है ये सब… पर मैं क्या कहूँ…’
‘कुछ नहीं कहो बस, मुझे मजबूरी, मासूमियत का फ़ायदा नहीं उठाना…!’ कहते हुए वो दूसरे कमरे में चले गये।

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। ये सब कैसे हो गया, ये मेरे पर अचानक इतने मेहरबान कैसे हो गये। मेरी मजबूरी और सच्चाई जान कर क्या उनका दिल पिघल गया था। क्या सच में मेरे अच्छे दिन आने वाले थे।

मैं धीरे धीरे उसके कमरे में आ गई, वो खिड़की पर खड़े हुए थे, मैंने उनकी पीठ पर हाथ लगाया, जैसे उन्हें झटका लगा। तुरन्त उन्होंने मुड़ कर मुझे देखा। उनकी आंखों के आंसू छिप नहीं सके। मैंने धीरे से अपना सिर उनकी छाती पर रख दिया।

‘अंकल मुझे माफ़ कर देना, पैसों के लालच में मैं बहक गई थी, आप नहीं होते तो जाने क्या हो जाता, मेरी तो इज़्ज़त ही लुट जाती…! फिर मेरी शादी भी नहीं होती ना!’
रमेश ने मेरे सर में चूम लिया और अपनी बांहों में भर लिया।

मुझे भी शायद इसी प्यार की तलाश थी जिसे मैं वासना में खोज रही थी। मेरे दिल में ठण्डक आने लगी। सुकून सा आ गया। ऐसा प्यार मेरी आत्मा तक को छू रहा था।

रमेश ने मुझे देखा फिर अपनी पत्नी की तस्वीर को देखा और सर झुका कर मुझसे मुस्करा कर कहा- गुड नाईट, अब सो जाओ… मुझे अब इनसे भी माफ़ी मांगनी है।
कह कर उन्होंने अपनी पत्नी की तस्वीर की ओर देखा, फिर अपने बिस्तर की शरण ली और मुँह तक चादर ओढ़ ली।

मैंने कमरे की बत्ती बुझा दी और बाहर जाने लगी। फिर जाने क्या ख्याल आया, मेरे मन में उनके लिये प्यार उमड़ पड़ा। मैं भाग कर गई और उनकी चादर के अन्दर घुस गई और उनसे लिपट गई। मैं भावना में बह गई थी। उनके मुख पर चुम्बनों की बौछार कर दी और रो पड़ी। मुझे प्यार से उन्होंने एक तरफ़ लेटाया और मैं उनसे लिपट कर सो गई। मेरे प्यासे दिल को माँ-बाप जैसा प्यार मिल गया था। शायद बहुत दिनों बाद इतनी गहरी नींद, सुकून भरी नींद, प्यार भरी नींद आई थी।

सुबह उठी तो रमेश अंकल ने फ़ार्म हाउस की चाबी मुझे दे दी और अपने घर चले गये। मुझे वो सुबह एक नई सुबह लगी, शायद एक नई जिन्दगी की शुरुआत थी… तभी मुझे अपना भाई याद आया कि वो मेरी राह ताक रहा होगा और मैं अपने घर की ओर जल्दी जल्दी चल पड़ी! Antarvasna




5



1

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *